क्यों की जाति है नवरात्रि के छठे दिन माँ कात्यायनी की पूँजा
नवरात्रि, एक भव्य हिंदू पर्व है जो नौ रातों और दस दिनों तक मनाया जाता है। इस दौरान भारत और दुनियाभर के भक्त मां दुर्गा के नौ रूपों, जिन्हें नवदुर्गा कहा जाता है, की पूँजा करते हैं।
इस पर्व की विशेषता पारंपरिक सजावट, लोक नृत्य, भक्ति संगीत और उपवास है, जो भक्ति, आत्मनिरीक्षण और आनंद का माहौल बनाते हैं। नवरात्रि के छठे दिन को भक्त मां कात्यायनी की पूँजा करते हैं।
मां कात्यायनी देवी दुर्गा के सबसे प्रचंड रूपों में से एक मानी जाती हैं और महिषासुर का वध करने के कारण उन्हें महिषासुरमर्दिनी की उपाधि प्राप्त है। उन्हें आमतौर पर शेर पर सवार दिखाया जाता है, जिसमें उनके एक हाथ में तलवार और कमल का फूल होता है, जबकि दूसरे हाथ से वह अभय और वरद मुद्रा में आशीर्वाद और सुरक्षा का प्रतीक दर्शाती हैं।
मां कात्यायनी को बुराई के विनाशक के रूप में पूँजा जाता है। वह बृहस्पति ग्रह पर शासन करती हैं और ज्ञान व सामंजस्य का प्रतीक मानी जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि मां कात्यायनी की कृपा से भक्तों के पाप धुल जाते हैं, बुरी शक्तियां दूर होती हैं और जीवन की बाधाएं समाप्त हो जाती हैं।
इसके अलावा, अविवाहित लड़कियां नवरात्रि के दौरान मां कात्यायनी की पूजा के दिन व्रत रखती हैं, ताकि उन्हें मनपसंद जीवनसाथी मिल सके।
नवरात्रि के छठे दिन भक्तों को सुबह जल्दी उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। पूँजा स्थल की सफाई सुनिश्चित करें और मां कात्यायनी की मूर्ति या तस्वीर पर ताजे़ फूल चढ़ाएं।
मंत्र जाप और प्रार्थना के दौरान भक्तों को अपने हाथों में कमल का फूल रखना चाहिए और मां को प्रसाद और भोग के रूप में शहद अर्पित करना चाहिए, ताकि उनका आशीर्वाद प्राप्त हो सके।