बलात्कार की सिलसिला जारी, फिर भी सिस्टम की आँखें बंद: भेड़ियों के झुंड से बेखबर हमारी न्याय व्यवस्था
हाल ही में कोलकाता में हुई एक बलात्कार की घटना ने एक बार फिर से समाज और न्याय व्यवस्था की विफलताओं को उजागर किया है। यह घटना, जिसमें एक महिला को एक गिरोह द्वारा बुरी तरह से शिकार बनाया गया, हमारे समाज के उन खतरनाक पुरुषों की समस्या को सामने लाती है जो ‘भेड़ियों के झुंड’ की तरह काम करते हैं।
सिस्टम की असंवेदनशीलता: क्यों है मामला जस का तस?
जब एक ओर बलात्कार और यौन हिंसा की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं, वहीं दूसरी ओर हमारी न्याय प्रणाली की प्रतिक्रिया चौंकाने वाली रूप से सुस्त बनी हुई है। क्यों है सिस्टम इतना असंवेदनशील?
- सिस्टम की अक्षमता: हमारे न्याय और कानून प्रवर्तन तंत्र अक्सर निष्क्रिय और अक्षम होते हैं। प्रक्रियात्मक देरी और प्रशासनिक बाधाएं न्याय की राह में बड़ी रुकावट बन जाती हैं।
- सहिष्णुता की कमी: जब यौन हिंसा के मामलों की संख्या बढ़ जाती है, तो समाज और सिस्टम दोनों ही उस पर असंवेदनशील हो जाते हैं। ऐसी घटनाओं की निरंतरता से लोगों में संवेदनहीनता का एक भाव उत्पन्न हो सकता है।
- पीड़ितों पर आरोप: समाज में अक्सर पीड़ितों पर ही आरोप लगाए जाते हैं, और उनकी पीड़ा की बजाय उनके कार्यों पर सवाल उठाए जाते हैं। यह मानसिकता न्याय के रास्ते में एक बड़ी बाधा बनती है।
- अपर्याप्त समर्थन प्रणाली: यौन हिंसा के शिकार लोगों को अक्सर पर्याप्त सहायता नहीं मिलती। उन्हें मानसिक स्वास्थ्य परामर्श और कानूनी सहायता की कमी का सामना करना पड़ता है
हर आंकड़े और समाचार के पीछे एक व्यक्ति की पीड़ा छिपी होती है। कोलकाता का मामला सिर्फ एक संख्या नहीं है; यह एक ऐसे व्यक्ति का दुख है जिसकी जिंदगी चूर-चूर हो गई।
हमें खुद से यह सवाल पूछना होगा: क्या भारत यौन हिंसा के प्रति सुन्न हो चुका है? क्या हम इतनी बार इन घटनाओं को देख चुके हैं कि अब हम उन्हें बिना किसी प्रतिक्रिया के देख रहे हैं? जवाब एकदम स्पष्ट होना चाहिए – नहीं। हमें अब अपने न्याय व्यवस्था और समाज की सोच में सुधार की जरूरत है।
- कानूनी प्रक्रियाओं में सुधार: न्याय प्रणाली को अधिक प्रभावी और त्वरित बनाना आवश्यक है ताकि अपराधियों को जल्दी सजा मिले।
- पीड़ितों को सशक्त बनाना: पीड़ितों को मानसिक और कानूनी सहायता प्रदान करना जरूरी है ताकि वे न्याय की प्रक्रिया में आसानी से शामिल हो सकें।
- संस्कृति में बदलाव: महिलाओं के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देने वाली सांस्कृतिक मान्यताओं को समाप्त करना आवश्यक है।
- कानून प्रवर्तन को मजबूत करना: पुलिस और अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों को यौन हिंसा के मामलों को संवेदनशीलता और प्रभावी तरीके से संभालने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
बलात्कार और यौन हिंसा के खिलाफ यह लड़ाई केवल अपराधियों को दंडित करने की नहीं है, बल्कि एक सुरक्षित और न्यायपूर्ण समाज बनाने की भी है। यह सामूहिक प्रयास की मांग करता है, जिसमें सरकार, कानून प्रवर्तन, नागरिक समाज और व्यक्तिगत स्तर पर सभी की भागीदारी आवश्यक है।
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