“जन सुरक्षा से बड़कर कुछ नहीं”: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है और कोई भी धार्मिक संरचना जो सड़क, जलाशयों या रेलवे ट्रैक पर अतिक्रमण कर रही है, उसे हटाना होगा। कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, और बुलडोजर कार्रवाई और अतिक्रमण विरोधी अभियान के निर्देश सभी नागरिकों पर लागू होंगे, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो।
जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की बेंच उन याचिकाओं की सुनवाई कर रहे थे जो अपराधियों के खिलाफ बुलडोजर कार्रवाई को चुनौती दे रही थीं। यह प्रवृत्ति, जिसे कई राज्यों में ‘बुलडोजर न्याय’ के रूप में जाना जाता है, में राज्य प्राधिकरणों ने तर्क दिया कि ऐसे मामलों में केवल अवैध संरचनाओं को ध्वस्त किया गया है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, जो उत्तर प्रदेश, गुजरात और मध्य प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, से पूछा गया कि क्या किसी व्यक्ति पर अपराध का आरोप लगना बुलडोजर कार्रवाई का आधार हो सकता है। इस पर उन्होंने जवाब दिया, “बिल्कुल नहीं, यहां तक कि बलात्कार या आतंकवाद जैसे जघन्य अपराधों के मामलों में भी नहीं। जैसा कि मेरे माननीय ने कहा कि नोटिस एक दिन पहले नहीं दिया जा सकता, इसे पहले से ही जारी करना होगा। ज्यादातर नगर निगम कानूनों में नोटिस जारी करने के प्रावधान होते हैं, और इसे पंजीकृत डाक के माध्यम से जारी किया जाना चाहिए।”
बेंच ने कहा कि नगर निगम और पंचायतों के लिए अलग-अलग कानून हैं। इसके अलावा, उन्होंने एक ऑनलाइन पोर्टल बनाने का सुझाव दिया ताकि लोग जानकारी प्राप्त कर सकें और रिकॉर्ड बनाए और रखें जा सकें।
सॉलिसिटर जनरल ने चिंता जताई कि अदालत कुछ मामलों के आधार पर निर्देश दे रही है, जिसमें एक समुदाय को निशाना बनाए जाने का आरोप है।
कोर्ट ने जवाब दिया, “हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं, और हमारे निर्देश सभी के लिए होंगे, चाहे उनका धर्म या समुदाय कुछ भी हो। सार्वजनिक सड़क, फुटपाथ, जल निकाय या रेलवे लाइन क्षेत्र में अतिक्रमण हो तो उसे हटाना होगा। सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है। यदि कोई धार्मिक संरचना सड़क के बीच में है, चाहे वह गुरुद्वारा हो, दरगाह हो या मंदिर, वह सार्वजनिक अवरोध नहीं बन सकती।”
जस्टिस गवई ने कहा, “अवैध निर्माण के लिए एक ही कानून होना चाहिए, यह धर्म, आस्था या विश्वास पर निर्भर नहीं होना चाहिए।”
वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर, ने आवास की उपलब्धता पर तर्क दिए। सॉलिसिटर जनरल ने इसका विरोध करते हुए कहा, “हमें इस मामले को अंतरराष्ट्रीय नहीं बनाना चाहिए। हमारी संवैधानिक अदालतें पर्याप्त रुप से शक्तिशाली हैं और हमारी सरकार गैर-विरोधात्मक तरीके से सहयोग कर रही है। हमें किसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसी की आवश्यकता नहीं है।”
वरिष्ठ अधिवक्ता सी.यू. सिंह, जो एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, ने तर्क दिया कि अपराध से लड़ने के उपाय के रूप में बुलडोजर का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।
श्री मेहता ने कहा कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ बुलडोजर कार्रवाई “बहुत कम और दुर्लभ” होगी। इस पर बेंच ने कहा, “यह कुछ व्यक्तियों के बारे में नहीं है, बल्कि 4.45 लाख लोगों के बारे में है।”
अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी अपराध का आरोपी होना संपत्ति ध्वस्त करने का आधार नहीं हो सकता, और यह केवल नागरिक नियमों के उल्लंघन के मामलों में ही किया जा सकता है। अदालत ने बिना अनुमति के की गई ध्वस्तीकरण पर अंतरिम रोक को बढ़ा दिया है।