राजनीति में मैथिली ठाकुर की एंट्री की चर्चा तेज
लोकगायिका मैथिली ठाकुर की बीजेपी नेताओं से हालिया मुलाकात ने बिहार की राजनीति में नई हलचल मचा दी है। मिथिला की यह सुर-साम्राज्ञी अब राजनीति के मैदान में उतरने की तैयारी में नजर आ रही हैं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी आगामी विधानसभा चुनाव में महिला वोटबैंक, मिथिला कनेक्शन और म्यूजिक — यानी M3 फैक्टर — को भुनाने की रणनीति बना रही है।
बीजेपी की नजर ‘महिला वोटर्स’ और ‘मिथिला कनेक्शन’ पर
मिथिला की बेटी मैथिली ठाकुर अपनी साफ-सुथरी छवि और लोकगायकी की वजह से बिहार के ग्रामीण इलाकों और महिला मतदाताओं के बीच खासा प्रभाव रखती हैं। बीजेपी मानती है कि लोकसंस्कृति से जुड़ी पहचान और सांस्कृतिक जुड़ाव महिला वोटर्स को आकर्षित कर सकता है।
पार्टी सूत्रों के अनुसार, बेनीपट्टी विधानसभा सीट से मैथिली ठाकुर को टिकट देने पर विचार किया जा रहा है। यह वही क्षेत्र है, जहां से उन्होंने राजनीति में उतरने की इच्छा भी जताई थी।
ब्राह्मण वोटबैंक और हिंदुत्व कार्ड की रणनीति
मैथिली ठाकुर का ब्राह्मण समाज से जुड़ाव बीजेपी के लिए एक और बड़ा प्लस पॉइंट माना जा रहा है। मिथिलांचल के ब्राह्मणों में पार्टी की घटती स्वीकार्यता को देखते हुए मैथिली की लोकप्रियता इस वर्ग को साधने का नया जरिया बन सकती है।
उनकी सांस्कृतिक छवि और माता सीता से मिथिला का धार्मिक संबंध बीजेपी के हिंदुत्व नैरेटिव को और मजबूत कर सकता है। हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पनौराधाम मंदिर के पुनरुद्धार कार्य का शिलान्यास किया था — इसी क्षेत्र से मैथिली का गहरा संबंध है।
‘लोकगायिका से लीडर’ बनने की राह
मैथिली ठाकुर पहले से ही बिहार की मतदाता जागरूकता अभियान की ब्रांड एंबेसडर रह चुकी हैं। वर्ष 2023 में उन्हें बिहार का स्टेट आइकन घोषित किया गया था।
इस साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर उन्हें ‘कल्चर एंबेसडर ऑफ द ईयर’ सम्मान से भी नवाजा गया। वहीं, राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर उनके भजन की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी खुलकर तारीफ की थी।
विरोध के स्वर भी उठे
हालांकि, सभी मैथिली की राजनीति में एंट्री से सहमत नहीं हैं। कुछ स्थानीय पत्रकारों और सोशल मीडिया यूज़र्स ने सवाल उठाए हैं कि मैथिली ने अब तक मिथिला क्षेत्र के विकास या समाजसेवा के क्षेत्र में कोई ठोस काम नहीं किया है।
स्थानीय पत्रकार बिदेश्वर नाथ झा ने फेसबुक पोस्ट में लिखा कि “मैथिली ठाकुर को अपने गांव और संस्कृति से जुड़ाव दिखाना चाहिए, न कि सिर्फ सोशल मीडिया पर उपस्थिति तक सीमित रहना चाहिए।”
संगीत से राजनीति तक का सफर
मैथिली ठाकुर का राजनीति में आना सिर्फ एक करियर शिफ्ट नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और सामाजिक प्रयोग भी माना जा रहा है। सवाल यह है कि क्या उनकी लोकगायकी की लोकप्रियता राजनीतिक स्वीकार्यता में भी तब्दील हो पाएगी?
बिहार की राजनीति में अब यह चर्चा तेज हो गई है कि ‘M3 फैक्टर’ — महिला, मिथिला और म्यूजिक — बीजेपी को नए समीकरण दे सकता है या नहीं।
